
इस बार सरकार ने किसानों को ऐसी सौगात दी है कि मंडियों में बिचौलियों के चेहरों से हंसी गायब हो गई होगी। केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश से मूंग और उड़द और उत्तर प्रदेश से उड़द की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद को हरी झंडी दिखा दी है।
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अब किसानों को अपनी मेहनत की उपज औने-पौने दाम पर बेचने की मजबूरी नहीं होगी। शिवराज सिंह चौहान, जो अब केंद्रीय कृषि मंत्री की कुर्सी पर हैं (और मूंग से ज्यादा गर्म राजनीति जानते हैं), ने खुद इस योजना को मंजूरी दी है।
PSS योजना का MSP मंतर!
मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत यह खरीद तब होती है जब बाज़ार भाव MSP से नीचे चला जाए — यानी जब “दलाल डिस्काउंट” ज़्यादा चलने लगे। यह योजना सीधे किसानों को राहत देने का रामबाण इलाज मानी जाती है।
चौहान जी ने ऐलान करते हुए कहा, “सरकार पर बोझ भले बढ़े, किसान की जेब खाली नहीं होनी चाहिए।” इससे एक बात तो साफ है — इस बार बिचौलियों को अपना “कट” कटते देखना पड़ सकता है।
पंजीकरण में पारदर्शिता, नहीं चलेगी मंडी में ‘अंधेरी रजनीति’
कृषि मंत्री ने तकनीक के सहारे पंजीकरण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की बात कही। किसानों को अब “फॉर्म भरवा के फार्म भरवाने वाले” बाबुओं से बचाने की कोशिश की जा रही है।
जरूरत पड़ने पर खरीद केंद्रों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी ताकि मूंग की दाल लाइन में खड़े खड़े न गल जाए। वहीं भंडारण में अनियमितता को लेकर भी कड़ी चेतावनी दी गई — यानी “गोदाम में गड़बड़ी, अब नहीं चलेगी हड़बड़ी।”
मंत्री-मंडली ने मिलाया दिमाग, किसानों को मिला दाम
बैठक में मौजूद रहे MP के कृषि मंत्री ऐदल सिंह कंसाना, UP के सूर्य प्रताप शाही, और केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी जैसे अधिकारी। सभी ने किसानों के लिए नीतिगत सरगर्मियों पर चर्चा की — और इस बार सिर्फ चर्चा नहीं, कुछ फैसला भी हुआ।
क्या MSP पर खरीद से बदलेगा किसानों का भविष्य?
सरकार की मंशा तो साफ है — “किसान को उसकी मेहनत का मूल्य मिले।” लेकिन असली परीक्षा ज़मीन पर अमल की होगी। MSP की घोषणा तो हर साल होती है, पर खरीद केंद्रों पर लंबी लाइनों और फॉर्म भरने के ड्रामे से किसान आजिज हैं।
फिलहाल, मूंग-उड़द वाले किसानों के लिए ये खबर वाकई किसी सब्ज़ी मंडी में चुपचाप बढ़े हुए दाम की तरह खशबूदार है।
सरकार की इस घोषणा से उम्मीद की जा सकती है कि किसानों की आमदनी में कुछ इजाफा होगा, और बाजार की मनमानी पर लगाम लगेगी।
अब देखना ये है कि ये MSP की दाल, किसानों की थाली तक कितनी सही तरीके से पहुंचती है।